Friday, October 5, 2012

महात्मा गाँधी को बचानेवाले बटक मियां, एक अनसुनी कहानी


(An untold story of a real hero who once saved our father of the nation, Mahatma Gandhi's life)
मोहनदास करमचंद गाँधी, जिनको लोग प्यारसे 'बापू' कहेते थे. खुद गुरुदेव रविंद्रनाथ टागोरने उनके नाम के आगे महात्मा शब्द लगाया था. पूरी दुनिया में शायद ही कोई होगा जिसने बापू का नाम न सुना हो या उनके बारेमे जानता न हो. भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का जीवन देश को समर्पित और खुल्ली किताब जैसा था. अगर कोई कहे कि उनके जीवन में पर्सनल कहा जाए एसा कुछ भी नहीं था तो वो सत प्रतिशत सत्य ही है. पर यहाँ पर जो बात में रखने जा रहा हूँ, वो है बापू के जीवन का एक अप्रकट किस्सा, जो शायद ही किसीने सुना हो.

बापू का जन्मदिन दो अक्टूबर, १८६९ और उन्होंने जब अंतिम सांसे ली वो दिन था ३० जनवरी, १९४८.  हरकोई जानता है की नथुराम गोडसेने सब के सामने उनकी हत्या की थी. महात्मा गाँधीजी के जीवन के साथ संलग्न लोगो के नामों की लिस्ट तैयार करे तो उसमे नथुराम गोडसे का नाम भी लिखा जायेगा. हम आजाद हुए उसके एक साल बाद नथुराम ने गांधीजी को मार डाला पर स्वतंत्रता मिलने से पहेले गाँधी बापू अंग्रेजो को एक आँख नहीं भाते थे. गाँधीजी का हत्यारा गोडसे विश्वप्रसिद्ध हो गया पर उनका जीवन बचानेवाले एक देशभक्त बावर्ची के बारेमे शायद ही कोई जानता होगा. क्या ये आश्चर्य नहीं है?

भारतियों की छोटी-बड़ी सारी समस्याओं के लिए हरदम तैयार गाँधीजी को अपने रस्ते से दूर करने के अनेकानेक प्रयास अंग्रेजोने किये थे. और ये प्रयासों में अंग्रेज इतना हीन कृत्या करने के लिए तैयार हुए कि एक बार उन्होंने बापू की हत्या करवाने का दुसाहस भी किया था.

ये बात है १९१७ की, जब नील के किसानो का आन्दोलन चरमसीमा पर था. अंग्रेज उनके ऊपर आतंक मचाये हुए थे. किसानो के आन्दोलन के समर्थन में गाँधी जी बिहार के मोतिहारी के दौरे पर गए हुए थे. बापू के दक्षिण अफ्रीका से वापस लौटने के बाद ये सर्वप्रथम जन-आन्दोलन था, जिसके नेतृत्व की डोर स्वयं गाँधी जी ने संभाली थी. ये ही वो जगह थी जहासे उन्होंने पहेली बार अंग्रेजो के सामने विरोध का आवाहन किया था. उस समय वहां के जिल्ला अधिकारी इरविन थे. गाँधी जी के मोतिहारी पहोचने की खबर मिलते ही उन्होंने उनको भोजन के लिए आमंत्रित किया. भोले बापूने उनका सहर्ष स्वीकार भी कर लिया. वे इरविन के घर पर पहोंचे उसके पहेले ही इरविन ने अपने बावर्ची बटक मियां को दूध में जहर मिला कर गाँधी जी को पिला देने का हुकम किया. इरविन के डर के कारण उन्होंने दूध में जहर मिला तो दिया पर उनका ह्रदय रो रहा था. और जब दूध का प्याला ले कर वे गाँधी जी के पास पहोंचे तब उन्होंने दूध में जहर होने की बात से उनको चुपके से अवगत कर दिया. तुरंत ही उनका इशारा समजते हुए बापूने दूध पिने से इंकार कर दिया और इसके साथ ही इरविन की साजिश नाकामयाब हुई. 

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ये घटना से परिचित थे. इस बात के तिन दसक के बाद हमारा देश भारत आजाद हुआ. १९५० में जब वे चंपारण के दौरे पर थे उस वक्त भी उनको ये बात याद थी कि बटक मियां ने गाँधी जी की जान बचाई थी. उन्होंने सब के सामने बटक मियां का सन्मान किया. बटक मियां तीव्र गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे थे. उनके हालात को देखते हुए डॉ. rajnedra  प्रसाद ने पैतीस बीघा जमीन उनके नाम करने का हुकम किया. 

पर वो हुकम सरकारी फाइलों तक ही रहे गया. बटक मियांने कई प्रयास किए पर उनको अपना हक़ मिलने से रहा. भरत के राष्ट्रपिता और  एक महामानव गाँधी जी का जीवन बचानेवाले बटक मियां अपने हक़ के लिए संघर्ष करते हुए ही १९५७ में मृत्यु के आगोश में चले गए. उनके देहांत के तक़रीबन चार साल बाद उनके परिवार को जमीं दी तो गई पर दिए गए वचन से बहोत कम. उनके एक लौते बेटे महमद जान अंसारी भी २००२ में चल बसे. २००४ में बिहार विधानसभा में ये बात रखी गई. वहां के सांसद जाबिर हुसैन के मुताबिक उन्होंने पश्चिम बिहार के बेतिया गांव में बटक मियां की याद में एक संग्रहालय बनवाया है. पर वे तो दुखी होते हुए ही दुनिया छोड़ चले.

जारखंड के स्वतन्त्र पत्रकार श्री शैलेन्द्र सिन्हा के साथ बातचीत करते हुए बटक मियां के पोते असलम अंसारी बताते है कि,'' मेरे दादाजीने हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को जहर वाली बात बता देने की हकीक़त पता चलते ही इरविन ने उनका जीना हराम कर दिया था. यहाँ तक कि हमारे परिवार को गांव से निकल जाने को मजबूर कर दिया था."

आज भी बटक मियां के परिवार जन ये ही आशा में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है कि एक दिन तो उनको अपना हक़ जरुर मिलेगा. २०१० में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने उनको उनका हक दिलाने के लिए आश्वस्त किया था.

सोचने वाली बात ये है कि ऐसे अनेक सरकारी कार्यक्रम और योजनायें है, जो कि सिर्फ कागज़ तक ही सिमित रह गई हो. अब अगर जमीं दी भी जाती है तब भी बटक मियां तो अपने हक की लड़ाई लड़ते हुए जन्नत नशीं हो चुके है. ध्यान देने लायक और एक बात कि अगर बटक मियां जैसे देशभक्त ने गाँधी जी कि जान बचाई नहीं होती तो क्या स्वतंत्रता आन्दोलन का जन्म हुआ होता? क्या हम आजाद भारत में साँस ले रहे होते? ऐसे अपरिचित देशभक्त को सत सत प्रणाम.



1 comment:

Unknown said...

Maravi nakhya bataj miyan a, Godse ne fasi thai, ena karta zer varu dudh api didhu hot to maja avat, aapdi praja azadi ne layak j nathi bani HAJI sudhi.