Wednesday, October 3, 2012

ओ माय गोड! क्या ये सच नहीं है?




'ओ माय गोड' इस मूवी के लिए मेरा रिव्यू होगा न कि फिल्म में किसी एक्टर की एक्टिंग के लिए या फिर उसके डिरेक्टर के लिए. में लिखना चाहूँगा तो बस उन लोगों के लिए जो इस फिल्म का विरोध प्रदर्शित कर रहे है. क्यूँ भाई? कौनसी परेशानी है आपको अगर इस में एक नंगा सच बताया गया है? इस फिल्म का विरोध वो ही लोग करेंगे जिनकी दुकानों को इस फिल्म के कारण असर हो सकती है. में बहोत छोटा था ये समजने के लिए जब मेरे दादाजी दूध शिवजी को चढाने के बजाये किसी भूखे या गरीब को पिलाने को कहेते थे. पर आज में इतना तो समजता ही हूँ कि भगवान भाव के भूखे है और हम है कि उनके 'भाव' (कीमत) लगाते रहेते है. किसी मंदिर, मस्जिद या गिरिजाघर में रूपये देने के बदले अगर कोई जरूरतमंद को थोड़ी सी मदद कर दे तो क्या इश्वर कोपायमान हो जाएगा? बहोत ही गलत सोच कर दी गई है हमारी और साथ ही में गलत हो गए है हम भी. प्रभु के पास प्यार के कारण नहीं जाते मगर डर या कोई लालच के कारण जाते है. अगर में नहीं गया तो पाप लगेगा या भगवान को बुरा लगेगा. अगर में नहीं गया तो मुझे भगवान मुझे वो नहीं देगा जो मुझे चाहिए. भगवान मुझे ये दिलादे तो में तुम्हे ये प्रसाद चढाऊंगा या फलाना- ढीमकाना करूँगा.

अरे भाई, मतलब के इलावा कुछ  जानते ही नहीं है क्या? जब तक लालच है तब तक ही भगवान है क्या? जैसे ही मनचाही मुराद पूरी हो जाएगी, प्रभु को किये हुए वायदे के मुताबिक रिश्वत तो दे ही आओगे. और वो भी, सिर्फ एक डर के कारण कि अगर नहीं जाऊंगा तो भगवान अपनी दी हुई चीज़ वापस ले लेंगे. खैर मतलब ख़तम हो जायेगा तो अपने पति, पत्नी, माँ-बाप, भाई-बहेन, रिश्तेदारों, दोस्तों सब को छोड़ दोगे? प्यार, भावनाएं, सच इनका भी अस्तित्व है इस दुनियामें. क्यूँ भूल जाते है हम ये सब. सच का सामना करने कि ताकत ही नहीं रखते और बस जुड़ जाते है विरोध करने में. विरोध करो मगर उस बात का जो गलत है. जहा पर शेर बनना है वहां पर तो भीगी बिल्ली बन जाते है और चुप बैठ जाते है.

जरुरत है हमें थोडा बड़ा सोचने की, लोगों की भावनाओं को समजने की, इश्वर ने जो कहा है उन बातों का अनुकरण करने की.  कोई माँ-बाप अपने  बच्चों को भला दुखी और भिखारी बनके मांगता फिरता और दर दर की ठोकरें खाता कैसे देख सकते है? हम लोग ही तो चिल्ला चिल्ला के भगवान के सामने गाते रहेते है कि माता, पिता, बंधू, सखा, विद्या, धन दौलत सब कुछ तुम ही हो. तो फिर अगर जो हमारा सब कुछ है वो हमारा बुरा कैसे सोचेगा? उनसे डर कैसा? उनसे मिलो तो प्यार से मिलो भाई. अरे भगवान तो अपने बच्चों को प्यार, शांति और आनंद में जीते हुए देखना चाहते है. वे चाहते है कि हम एक बादशाह की तरह जिए न की याचक की तरह. पर हमें बस मांगना ही सिखाया गया है. भाई, वो सब कुछ देता है. उनका 'तथास्तु' का आशीर्वाद हरदम चलता रहेता है. और ये मेरा पर्सनल एक्सपीरियंस है (में वो ही लिखता हूँ, जिसकी मुझे अनुभूति हुई हो). यहाँ तक की वो हमारी पात्रता से कई ज्यादा ही दे देता है. पर वो समजने के लिए सकारात्मक द्रष्टि चाहिए, जिसको भगवान इश्वर के कुछ ठेकेदार खुलने ही नहीं देते. शिवजी का ज्ञान रूपी तीसरा नेत्र हमारे पास है ही पर उसके ऊपर नकारात्मक विचारों के एक के ऊपर एक ऐसे अनेकानेक परदे लगाये हुए है. सब के अन्दर शिव का वास है ऐसा मान कर सब में उन्ही के दर्शन करेंगे और अपना-पराया, गरीब-धनवान, जाती, धर्म को भूल कर यहाँ तक कि जिसको हम अपना दुश्मन समजते है उनको भी गले लगाते हुए चलेंगे तो वो भी दुश्मन मिट कर 'अपनों कि लिस्ट' में आ जायेगा फिर किसीको कोई तकलीफ, कही पर कोई दुःख या परेशानी ही नहीं रहेगी.

जरुरत है जीवन जीने का नजरिया बदलने की, फिर पराये भी अपने हो जायेंगे और सारा संसार मंदिर बन जायेगा, वैकुण्ठ भी यही दिखेगा और शिवधाम भी यही प्रतीत होगा. अल्लाह अपने साथ ही दिखेगा और इसु को भी अपने इर्दगिर्द ही पाओगे. बाद में हम दर्द से नहीं, खुश हो कर, मस्ती में झूम कर, नाचते गाते हुए पुकारेंगे 'ओ माय गोड'!
जय हो     

1 comment:

Cosmos said...

Bahut sahi baat hai bhai. Logon ko kadwa sach hi sunne ki aadat nahi hai. Sabhi to 10 galiyan, char item song, 5 love scene aur 8 gaane wali happy ending film dekhni hai bas.