Monday, March 14, 2016

इरोम शर्मिला – “जब अपने अंतिम मुकाम पर पहुँच जाय जिन्दगी…”

Photo Courtesy - sabrangindia.in

’मृत्यु एक उत्सव छे, जो ए बीजाना काममां आवी शके तो.’ आ शब्दो छे 14 मार्च 1972 ना रोज जन्मेली मानवाधिकार कार्यकर्ता अने कवयित्री, इरोम शर्मिलाना. घर ना लोको एमने चानू कहीने बोलावे छे. 4 नवेम्बर 2000 थी आ लोखंडी महिला भूख हडताल पर छे. भूख हडताल पर उतर्या पछी त्रीजा दिवसे सरकारे एमनी धरपकड करी. 28 वर्षनी उमरे संघर्षनी शरुआत करनारी इरोमनी उमर आजे 44 थई.


2 नवेम्बर ना रोज मणिपुरनी राजधानी इंफालना मालोम मां असम राइफल्स ना जवानो ए दस निर्दोष लोकोने मोतने घाट उतार्या हता. आ कांडना बे दिवस बाद इरोम महात्मा गांधी ना मार्गे चालीने पोतानो संकल्प सिद्ध थशे ए इरादे भूख हडताल पर उतरी हती. आ अनशन पाछळनो संकल्प हतो (1958 थी) मिझोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम अने नागालेंड मां तथा (1990 थी) जम्मू-काश्मीर मां लागू आर्म्ड फोर्स स्पेशियल पावर एक्ट (AFSPA) दूर करवो. एमने नाक मां नळी वाटे ज भोजन आपवामां आवे छे.

राज्यपाल आ कायदो अमल मां मुकवानो एकाधिकार धरावे छे. आ कायदा अनुसार राज्य ना कोई पण विस्तार मां के संपूर्ण राज्य ने संवेदनशील जाहेर करीने त्यां आ कायदो अमल मां मुकी शके छे. शर्मिला ना मत मुजब आ कायदा ने लीधे समग्र नोर्थ-इस्ट मां मार्शळ लॉ नी स्थिति बनी गई छे. अने त्यांना लोको आवी परिस्थिति नो स्वीकार शा माटे करी ले? मानवाधिकार कार्यकर्ताओ नुं कहेवुं छे के सुरक्षा दळ आ कायदा नो फायदो उठावे छे अने निर्दोष लोको एनो भोग बने छे. आ खास कायदा पर लगाववामां आवेला आ आक्षेपोनी तपास माटे सरकारे जीवन रेड्डी समितिनी रचना करी हती. समितिना अहेवाल मां आ कायदो दूर करवानी भलामण करवामां आवी छे. पण हजु परिस्थिति ’जैसे थे’ ज छे.

लांबा अरसा थी लडी रहेली इरोमने जोईने याद आवता शब्दो – ’मुद्दते बीत गई ख्वाब सुहाना देखे; जगता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा…’पोताना संघर्ष विषे ’बर्थ’ शीर्षक साथे इरोमे एक हजार शब्दोनी एक कविता लखी छे, जे ‘आइरन इरोम टू जर्नी- व्हेयर द एबनार्मल इज नार्मल’ नामना पुस्तक मां प्रसिद्ध थई छे. सौथी लांबी भूख हडताल करवा अने सौथी वधु वार जेल मांथी छूटवा बाबते अत्यार सुधीमां एमने बे एवोर्ड आपवामां आव्या छे.

इरोम द्वारा लेखित एक कविता - अमन की खुशबू

जब अपने अंतिम मुकाम पर पहुँच जाय जिन्दगी

तुम, मेहरबानी करके ले आना
मेरे बेजान शरीर को
फादर कोबरू की मिट्टी के करीब
आग की लपटों के बीच
मेरी लाश का बादल जाना

अधजली लकड़ियों में
उसे टुकड़े-टुकड़े करना
फावड़े और कुल्हाड़े से
नफ़रत से भर देता है
मेरे मन को

बाहरी आवरण का सूख जाना लाजमी है
इसे जमीन के अंदर सड़ने दो
कुछ तो काम आये यह
आने वाली नस्लों के
इसे बदल जाने दो
खदान की कच्ची धातु में

मैं अमन की खुशबू
फैलाऊंगी अपने जन्मस्थल
कांगली से
जो आने वाले युगों में
फ़ैल जायेगी
सारी दुनिया में

(देश-विदेश, अंक-10 मां प्रसिद्ध.)

मणिपुर मां ’लोह महिला’ अने ’मेनघाओबी’ तरीके ओळखाती इरोम ना समर्थन मां मणिपुर स्टेट कमीशन फॉर वूमन, नेशनल केम्पेन फॉर पीपल्स राइट टू इंफॉर्मेशन, एकता पीपल्स यूनियन ऑफ ह्यूमन राइट्स, नेशन केम्पेन फॉर दलित ह्यूमन राइट्स, ऑल इंडिया स्टुडंट्स एसोसिएशन, फोरम फॉर डेमोक्रेटिक इनिसिएटिव्स, भारतीय कॉम्युनिस्ट पार्टी माक्सर्वादी-लेनिनवादी वगेरे उपरांत फोरेन नी केटलीक संस्थाओ पण उभी छे.

लगभग छेल्ला 12 वर्षो थी शर्मिला ए पोतानी माता नो चहेरो नथी जोयो. इरोमे पोतानी माता पासेथी वचन लीधुं छे के ज्यां सुधी पोताना लक्ष्यो सिद्ध न करी ले त्यां सुधी ए तेने मळवा न आवे. भीनी आंखो साथे इरोमनी माता पोतानी व्हालसोयी दीकरीनी राह जुए छे पण एने मळवा नथी जती. तेओ नथी इच्छता के एमने मळ्या बाद इरोम ढीली पडी जाय अने पोतानुं कार्य अधुरूं छोडीने हार मानीने पीछेहट करी ले. दिल्हीना एक शांत विस्तारमां बेसीने आ लेख लखी रह्यो छुं त्यारे मारा मीत्रो, परिवारजनो अने स्नेहीओ मने मारा जन्मदिवसनी शुभेच्छाओ आपवा माटे फोन करी रह्या छे. एक नंबर पर आवता फोन कोल डाइवर्ट फेसेलिटी द्वारा बीजा नंबर पर डाइवर्ट करी शकाय छे. काश शुभेच्छाओ अने आशिर्वाद पण ए ज रीते डाइवर्ट करी शकाता होत. कदाच ए शक्य नथी. पण इश्वर समक्ष एटली प्रार्थना के ’वगर मांग्ये सघळुं आप्युं छे ते मने, मांगनार नी सामे तो जो क्यारेक मने-कमने…’