अक्सर देखा गया है की रील लाइफ रियल लाइफ के ऊपर हावी हो जाती है. और लोग फ़िल्मी
दुनियामे जीने लगते है. फिल्मों में हीरो के हाथों से विलन की पिटाई करते और हिरोइन
के साथ बागों में गाना गाते देख 'शेखचल्ली' जैसे लोग अपने आप को परदे
पर देखने लगते है. जेम्स बोंड की कोई मूवी देख कर बहार निकलते वक्त कार या बाइक ड्राइव
करते लोगोमें अनेकानेक 'देसी जेम्स बोंड्स' के दर्शन अनायास ही हो जाते है. ऐसी कई
फिल्मे है, जो नोवेल्स या किताबो (बुक्स) से प्रेरित हो कर बनाई गई हो. बुक्स का हमारे
जीवन में अनूठा महत्व है. पिछले कुछ समय से ऐसी ही एक बुक ने मार्केट में धूम मचाई
है. बुक्स इत्यादि के शौक़ीन लोग की सापेक्ष पढना लिखना कम पसंद या नापसंद करनेवाले
लोग उसके संपर्क में रहेना अपना परम कर्तव्य मानते है. अब इतनी कहानी करने के बाद ये
जानना मुश्किल नहीं है कि मैं 'फेसबुक' नामक उस 'परममित्र' की बात कर रहा हूँ जिसको
लोग प्यारसे 'ऍफ़बी' कहे कर बुलाते है. (परममित्र शब्दप्रयोग - चूँकि पुस्तकों को मनुष्य
के परममित्र का स्थान दिया गया है इसलिए फेसबुकमें 'बुक' शब्द का प्रयोग मात्र, उसको
मनुष्यके परममित्र होने का स्थान आरक्षित करता है. और क्यों नहीं? भाई, हम उस के देश
में जी रहे है, जहा आरक्षण के नाम पर सरकार बनती भी है और गिरती भी है!)
अगर कोई एक फिल्म राह चलते इन्सान को 'देसी बोंड' (चाहे थोड़ी देर के लिए ही) बना
सकती है तो आश्चर्य कैसा अगर ’फेसबुक’ भी ऐसा ही कुछ कारनामा कर रहा हो. मेरा एक 'फेसबुक
फ्रेंड' चुटकुले जैसी दो चार लाइन्स लिख कर उसे फेसबुक पर बतौर शायरी पेश करता है.
आदत से मजबूर लोग बिना पढ़े ही कमेंट्स और लाइक्स की बरसात कर देते है. नतीजा ये है
की इन्होने अपने आप को मिर्ज़ा ग़ालिब समजना शुरू कर दिया है. और अब महाशय अपना सारा
कामकाज छोड़कर बेठ गए है, अपने 'शेरो-शायरी' की एक किताब छपवाने! सारा दिन नई नई जिंगल्स
(वह जनाब उसको शायरी कहेते है) बनता रहेता है और लोगों को (पकड़-पकड़ के) सुनाता रहेता
है.
रिश्तों के ऊपर इसकी असर कुछ ऐसी हुई है कि वास्तविक जीवन के संबंधों की सापेक्ष
लोग फेस्बुकिया वर्चुअल रिश्तो को अहमियत देने लगे है. अपने जीवन की खुशियों को दूसरों
की 'कमेंट्स' और 'लाईक्स' की सीमारेखा में बांधने लगे है. कई लोग आदत से मजबूर होते
है और बिना कुछ सोचे-समजे ही 'लाईक' पर क्लीक कर देते है. और ये बात जानते हुए भी फेसबुक
के नकली रिश्तों के आदि हो चुके लोग 'लाईक' पर किये गए क्लिक की प्रतीक्षा करते है
और उसको लाईक (पसंद) करते है.
मैं फेसबुक का विरोधी नहीं हूँ. मैं भी फेसबुक यूज़र हूँ और उसके सारे फीचर्स यूज़
करता हूँ. पर उसका आदि नहीं हूँ और न ही होना चाहता हूँ. किसी भी चीज़ का आदि होना
ही सारी तकलीफों की 'अम्मा' है. कुछ काम से सुरत जाना हुआ. वहां मेरे मेरे एक परममित्र
ने मझे होटल में ठहेरने नहीं दिया और अपने घर ले गए. देर रात तक में, वह और भाभी गप्पे
हांक रहे थे. तभी मेरा ध्यान उनके बेटे पर गया. वह नींद में हाथ से कुछ इशारे
कर रहा था. मेरे पूछने पर मेरे दोस्त ने बताया की, ''क्या करे भाई,
सपने में किसी 'फेस्बुकिया फ्रेंड' से बतिया रहा होगा! मोबाइल पर फेसबुक होने के कारण
हाथ पुरे दिन मोबाइल की स्विचिस पर घूमता रहेता है. अब सपने में फेसबुक बाबा न आये
तो ही आश्चर्य!'' अब हाल ये हो रहा है की लोग सामने बैठे आँखें पटपटाते, हाथ-पैर हिलाते
इन्सान से ज्यादा, फेसबुक पर किसने क्या कहा, क्या लिखा या कौनसी कमेन्ट दी और कौनसा
फोटो शेयर किया ये सब बातें जानने में ज्यादा उत्सुकता दिखने लग गए है.
एक बार मेरे एक करीबी दोस्त की ऑफिसमें ऐसा कुछ हुआ जो याद आता है तब बाल नोचने
का मन (अपने नहीं, मोबाइल पर खेलते फेसबुक प्रेमिओं के) करता है. मई और मेरे मित्र
के बिच कुछ गहन चर्चा हो रही थी. तभी अचानक कुछ धमाका हुआ. अपनी जगह से उठ कर धमाके
की दिशा में गए तो देखा की मेरे मित्र की एक सहकर्मी अपनी कुर्सी से निचे गिर पड़ी थी.
पीछे से मामला पता चला की मोबाइल फेसबुक गुरुदेव ने उसको इतनी ध्यानावस्था तक पहोंचा
दिया था कि वो भूल गई कि वो ऑफिस में बेठी है. अपने किसी दोस्तने शेयर की हुई कोई पोस्ट
पर लड़की इतना उत्साह में आ गई कि वह अपने अपना आपा खो बेठी. जैसे एक मदारी अपनी बंदरिया
को नाचता है ठीक उसी तरह फेसबुक महाशय ने उसको अपने कंट्रोल में कर लिया था. जल्दी
से कमेन्ट कर दू सोच कर इतने आवेग में आ गई कि कुर्सी पर बेठी बेठी उछल पड़ी. बस फिर
जो होना था वो हो गया. एक धमाका और ऑफिस के सारे लोग वहा. अरे भाई, जरा धीरे! काहे
की जल्दी है! थोड़ी सांसे लेना भी जरुरी है.
हाल ही में फेसबुक ने अपने सुरक्षा नियमों को पहले से कुछ कड़ा कर दिया है जिसके कारण इसके उपयोक्ताओं में काफी रोष दिखा है। इसके कड़े सुरक्षा नियमों से नाराज उपयोक्ताओं ने एक समूह बनाकर फेसबुक पर फेसबुक के विरुद्ध ही अभियान चला दिया है। उन्होंने ने एक साइट बनाई है quitfacebookday.com . जिसपर फेसबुक उपयोक्ताओं से ३१ मई को फेसबुक छोड़ो दिवस के रूप में मनाने का आहवान किया है।
कौनसा देश कितना
फेसबुक यूज़ करता है? जुलाई २०१२ तक के आंकड़े.
अमेरिका - 15,56,00,000
ब्राज़ील
- - 5,28,00,000
भारत
- - 5,10,00,000
इंडोनेशिया - 4,40,00,000
मेक्सिको - 3,62,00,000
फेसबुक प्रेमिओं के नजरिये से देखे तो कुछ हद तक फेसबुक से कुछ फायदे भी जरुर हुए
है.
·
लोग अपने खोए हुए दोस्तों, रिश्तेदारों को (अगर कंप्यूटरसेवी
हो तो) ढूंड सकते है (सिर्फ फेसबुक पर एड करने के लिए). दूर रहेते हुए भी टेक्नोलोजी
के कारण नजदीक हो गए है (लोगों को ऐसा कहेते सुना है! पर मैंने तो देखा है कि सामने
बेठा आदमी मिलो दूर कर दिया जाता है. यहाँ तक कि इसके कारण कईओं की शादियाँ भी टूट
चुकी है).
·
अपने विचार लोगों तक पहोचा सकते है (चाहे वो सही हो या गलत).
·
माइंड तरोताजा हो जाता है (मैंने तो सुना है कि ये एक एडिक्शन
बन जाता है. और धीरे धीरे डिप्रेसन की गिरफ्त में आ जाता है).
·
नए नए दोस्त बनते है (इस लिस्ट में 'लायक-नालायक' के भेद की
कौन परवाह करता है).
मैं और मेरा फेसबुक ... अक्सर ये बातें करते है, तन्हाई थी तब तुम नहीं थे... अब
बस लिख लेता हूँ… कभी- कभी 'तन्हाई' तेरे बारेमे... फेसबुक पर…
कुलदीप लहेरू
Kuldeep Laheru
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