इस रविवार की शाम ऐसे ही गुज़र जाती जैसे हर सप्ताह होता है।
गाँवमें साथ खेलते, पढ़ते बचपन के कुछ
खास मित्र दिल्ली में भी अगल बगल में ही रहेते है। आज मेरे उन दोस्तों
के साथ कुछ वक्त बिताने से ज्यादा मैंने अपनेआप के साथ समय बिताना चाहा। पता नहीं
क्यूँ, तब में कुछ ज्यादा ही
चिन्तनशील हो गया था। चाचा घर पे बीमार थे, घर का रिनोवेशन भी हो रहा था। बड़े भैया के घर बेटी का जन्म
हुआ था। पड़ोस में रहेते वसी चाचा चल बसे थे। जब छोटा था तब वे हम बच्चों को रोज़
टॉफी खिलाते थे, हमारे साथ खेलते
थे, कहानियां सुनाया करते थे।
ये ही सब कारन से शायद अपने घर की- अपने गाँव की याद सता रही थी।
सोचा टीवी पर
कुछ देखू। भविष्य
की परिकल्पना पर
चल रहे एक
कार्यक्रम ने मेरी
सोच को एक नई दिशा दी। भविष्य यानि
भूतकाल का बदला हुआ स्वरुप। एक और परिभाषा दे तो, भविष्य यानि हमारी वे सोच का परिणाम
जो हम भूतकाल मे चाहते थे।
कुछ दिनों पहेले कही
पढ़ा था कि युएस में पैदा होनेवाले हरेक बच्चों का ब्लड सेम्पल और गर्भनाल से स्टेम
सेल सरकारी प्रयोगशाला मे पहोंचाया जा रहा है। कहा जाता है कि ऐसा करने का कारण है
अमरत्व कि खोज। सायंटिस्टस ऐसी दवाई खोज रहे है जिससे लोग अमरत्व प्राप्त कर लेंगे!
यहाँ पर अमरत्व की व्याख्या आज की आयु से बढ़ा कर ४००-५०० साल तक की आयु कर सकते है।
दिनबदिन बढ़ रही आबादी को देखते हुए ये दवाई इन्सान की कठिनाइयों में इजाफा ही करेगी
ये समजना आसान है। हलाकि, इसका सेवन करके आयु बढ़ाना सबके लिए मुमकिन न होगा क्यूंकि
आयुवर्द्धक दवाई कितनी महेंगी होगी इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है।
आज से सो
साल पहेले शायद
ही किसीने आज
के दौर के
वाहनों की कल्पना
की होगी। किसीने
सोचा भी न
होगा कि धरती
के एक छोर
से दुसरे छोर
तक कुछ ही
घंटो में पहोंचना
आसन हो जाएगा।
जो आज मुमकिन
हो चूका है।
आज विज्ञान ऐसे
ग्रहों की खोज
में जुटा हुआ
है जहां जीवन
पनप सके। और
ताज्जुब नहीं होगा
अगर सन २१००
में हमारे बच्चे
दुसरे ग्रहों पर
अपना बसेरा बनाए।
अगर विज्ञान हमें
अमर बनाने की
दवाई खोज पाया
तो हम जिन्दा
होंगे और शायद
हम हर साल,
दो साल में
अपने पोते पोतियों
के साथ खेलने
के लिए एक
ग्रह से दुसरे
ग्रह तक एयर
क्राफ्ट से आने-जाने लगेंगे।
मोबाईल और इन्टरनेट
जैसी टेक्नोलोजी ने
पूरी दुनिया बदल
दी है। एक
पल में ही
ये टेक्नोलोजी हमे
पूरी दुनिया के
साथ जोड़ सकती
है। १५ साल
पहेले इसकी कल्पना
भी नामुमकिन थी।
आनेवाला कल हमें
इससे भी आगे
ले जाएगा। बटन
दबाते ही हम
शारीरिक रूप से
भी एक जगह
से दूसरी जगह
पहोंच जायेंगे। मैथोलोजिकल
फिल्मो में दिखाए
जाते चमत्कार विज्ञान
की सहायता से
वास्तव मे हो
सकेंगे। लोग अद्रश्य
हो सकेंगे, हवा
मे उड़ना
उनके लिए सिर्फ
एक बटन दबाने
जितना दूर होगा।
टेक्नोलोजी
का विकास अनिष्ट
तत्वों से निजात
पाने मे मदद
करेगा। ड्रोन विमान जैसी
खोज लादेन को
मार गिराने मे
महत्वपूर्ण रही। लादेन
जैसे, समाज के
दुश्मनों को वश
मे करने के
लिए ओर ज्यादा
अत्याधुनिक शस्त्र बनेंगे। हर
सिक्के के दो
पहेलु होते है।
ठीक वैसे ही
यह विकास विनाशकारी
हथियारों को भी
जन्म देगा। जितने
बड़े और टेक्नीकल
शस्त्र होंगे, वे उतने
ही बड़े विनाश
का संभव निश्चित
करेंगे। हिरोशिमा-नागासाकी का
विनाश भला कौन
भूल सकता है?
आराम, सुविधाए ओर ज्यादा
बढ़ेगी। ऑफिस मे रोबोट पर्सनल सेक्रेटरी के काम किया करेंगे। घर का सारा काम, यहाँ तक
की बच्चो को संभालना, उनका खाना-पीना, स्कूल, होमवर्क से ले कर उनके सोने तक का ख्याल
भी रोबोट के जिम्मे होगा। पर इसके साथ ही संबंधो की परिभाषा भी बदल ही जाएगी। रोबोट
के साथ रहेते रहेते लोग उनके जैसे ही हो जायेंगे। दिल के रिश्तो की अहेमियत ही नहीं
रहेगी और लोग खुद मशीन जैसे ही हो जायेंगे।
ये सब सोचते-सोचते पता नहीं
कब मेरी आँखे
लग गई और
में सपनो की
दुनियां मे चला
गया। जो भुत,
वर्तमान या भविष्य,
कही पर न
थी। मैंने देखा
की चाचा घर
पे बीमार थे
और उनकी देखभाल
के लिए एक
यंत्रमानव था। घर
को जब चाहे
तब बटन दबाते
ही दुसरे ही
स्वरूप मे ढला
जा सकता था।
अब हमें रिनोवेशन
की जरुरत न
थी। बड़े भैया
के घर बेटी
का जन्म हुआ
था, और तब
में घर से
दूर हो कर
भी एक उपकरण
की मदद से
वहां, अपनेआप को
महेसुस कर पा
रहा था। पड़ोस
में रहेते वसी
चाचा चल बसे
थे। पर डॉक्टर्सने
एक इंजेक्शन लगा
कर उनकी सांसे
फिरसे शुरू कर
दी। दूसरी तरफ
टीवी पर न्यूज़
चल रहे थे।
तीसरा विश्वयुद्ध अपनी
चरमसीमा पर था
और आधी से
ज्यादा धरती खून
से लथबथ थी।
और तभी अचानक
एक खौफ ने
मुझे नींद से
जगा दिया। और
खुशियों से छलकते
वर्तमान प्रदान करनेवाले इश्वर
के चरणोंमे मेरा शीश झुक गया।
मुझे अच्छी तरह याद है
वो पल। बड़े
ज्ञानी, विद्वान् ऋषि मुनि
जो कहे गए
है वैसे
ही समाधी के
ही वो पल
थे। थोड़े पल
के लिए ही
सही… पर मेरे
मन मे भूतकाल
की कोई स्मृति
भी न थी
और न था
भविष्य का कोई
विचार। इश्वर के चरनोमे
शीश झुकाए हुए
में सिर्फ वही
पर था। वर्तमानमे।
शायद वो ही
क्षण रहे होंगे,
जब में जिन्दगी
सही मायनेमे जी
रहा था।